10 अगस्त को दोपहर 1: 38 मिनट तक भद्राकाल! रक्षाबंधन के लिए दोपहर के बाद रक्षासूत्र बांधने के लिए शुभ समय है।
त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है! और रिश्ते हमारी पहचान हैं। जीवन की परिभाषा हम यहीं से सीखते हैं। भारतीय संस्कृति में त्योहार कुछ यूं रचा बसा है कि उसे एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। इसमें रस्म,रिवाज और रिश्ते एक दूसरे में कुछ यूं गूंथे हैं कि एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर रिश्तों की भावनाओं को समझना है तो हमें अपने देश के अलग-अलग पर्व त्योहारों को समझना होगा। इन्हीं में से एक है रक्षाबंधन । जो रिश्ता होता है भाई-बहन का। प्यार की डोर से बंधा ये मासूम रिश्ता जितना मजबूत होता है,उतना ही गहरा भी। यह एक ऐसा रिश्ता है कि एक साथ इसमें आपको कई रिश्ते का अहसास होगा। एक बहन कभी आपकी दोस्त होती है,तो जरूरत पड़ने पर मां भी बन जाती है,कभी-कभी तो पिता की भूमिका भी अदा करती है। हर अच्छे-बुरे वक्त में वह आपके साथ खड़ी होती है। कई बार यही भूमिका एक भाई भी अपनी बहन की जिंदगी में अदा करता है।
वक्त और हालात के साथ इसके व्यवहार में जरूर बदलाव होता रहा है कि लेकिन इसकी परिभाषा नहीं बदली। अब भी इसकी मासूमियत कायम है। हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। हिंदू धर्म में कन्या को बहुत बड़ा पद दिया गया है। कन्या को हम देवी मानते हैं। नवरात्र के मौके पर हम उसकी पूजा करते हैं। कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है।
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन दीर्घायु देने वाले आयुष्मान योग के साथ दिवसपर्यंत श्रवण नक्षत्र और पूर्णिमा तिथि रहेगी। श्रावणी पूर्णिमा १० अगस्त रविवार को श्रवण नक्षत्र तथा सौभाग्य योग के अंतर्गत आ रही है। राखी उदयकाल में भद्रा युक्त रहेगी। भद्रा का आरंभ चतुर्दशी की रात्रि 11.32 बजे आरंभ होकर दूसरे दिन अर्थात श्रावणी पूर्णिमा पर सुबह 11.37 बजे तक रहेगा। अतः 11.40 से 12.55 तक अभिजीत मुहूर्त के उत्तरार्ध से रक्षाबंधन पर्व का आरंभ होगा। तत्पश्चात निरंतर शुभ समय है।
रक्षाबंधन पर अक्सर भद्रा व्यवधान डालती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि श्रावणी पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र में सुबह के दो प्रहर छोड़कर दोपहर से पर्व मनाया जाना चाहिए। इस बार पर्व पर भद्रा का साया नहीं पड़ रहा है। पंचक 11 अगस्त को लगेगा। इस बार भद्रा 9 अगस्त की रात 3.25 से 10 अगस्त की दोपहर 1.37 बजे तक रहेगी। इसके बाद ही राखी बाँधे। पूर्णिमा दिवसपर्यंत और श्रवण नक्षत्र रात्रि 12.09 बजे तक रहेगा।यानी रक्षाबंधन के लिए दोपहर के बाद रक्षासूत्र बांधने के लिए शुभ समय है।
सभी भाई बहन ध्यान दे
भद्राकाल में रक्षासूत्र बंधवाने से हानी होती है "जैसे शनि की क्रुर द्रर्ष्टि हानि करती है,ऐसे ही शनि की बहन भद्रा,उसका प्रभाव भी नुकसान करता है ! अत: भद्राकाल में रक्षासूत्र नहीं बांधना चाहिए !रावण ने भी भद्राकाल में सुप्रणखा से रक्षासूत्र बंधवा लिया,परिणाम यह हुआ कि उसी वर्ष में उसका कुलसहित नाश हुआ ! इस काल में कोई बहन अपने भाई को राखी न बाँधे ! भद्राकाल की कुदर्ष्टि से कुल में हानि होने की सम्भावना की बढती है! इस बार 10 अगस्त को दोपहर 1: 38 मिनट तक भद्राकाल में है,इसके बाद ही राखी बाँधे ! सभी साधक भाई - बहन इस सुचना को अधिक से अधिक लोगो में फैलाये
क्या है भद्रा :
धर्मशास्त्र के अनुसार जब भी उत्सव काल त्योहार या पर्व काल पर चौघड़िए तथा पाप ग्रहों से संदर्भित काल की बेला में निर्दिष्ट निषेध समय दिया गया है, वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य है। पौराणिक मान्यता के आधार पर देखें तो भद्रा का संबंध सूर्य और शनि से है।
मान्यता है कि जब भद्रा का वास किसी पर्व काल में स्पर्श करता है तो उसके समय की पूर्ण अवस्था तक श्रद्धावास माना जाता है। भद्रा का समय 7 से 13 घंटे 20 मिनट माना जाता है, लेकिन बीच में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वाद्ध नक्षत्र के मान व गणना से इसके समय में घट-बढ़ होती रहती है। शास्त्रोक्त मान्यतानुसार भद्रायुक्त पर्व काल का वह समय छोड़ देना चाहिए, जिसमें भद्रा के मुख तथा पृच्छ का विचार हो। हालांकि रक्षाबंधन के दिन भद्रा का समय उदय काल से साढ़े पांच घंटे का रहेगा। इस दृष्टि से भद्रा के उक्त समय को छोड़कर राखी का पर्व आरंभ किया जा सकता है।
रक्षाबंधन पर्व के मुहूर्त : दोपहर से है शुभ संयोग
दिन
1.30 से 3.00 बजे लाभ
3.00 से 4.30 बजे अमृत
रात
7.00 से 8.30 बजे लाभ
10.00 से 11.30 बजे शुभ
आइए रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर बहनों व बेटियों को बचाने का हम संकल्प लें।
हमारे देश में जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं। आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता इस दुनिया में आने से पहले ही मार देते हैं। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि देश के अलग-एलग जगहों पर कन्या-भ्रूण हत्या, महिलाओ, युवतिओं व बच्चियों के साथ बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं।
भाई-बहनों के इस त्योहार को जिंदा रखने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर कन्या-भ्रूण हत्या का रोकें और महिलाओं के साथ हो रहे शोषण का विरोध करें।
रक्षाबंधन का पर्व सभी पर्वों से बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन बहन अपने भाई को रक्षासूत्र बांधती है। इसके फलस्वरूप भाई अपनी श्रद्धानुसार बहन को उपहार देकर उसकी रक्षा का वचन देता है।
राखी का बंधन कई युगों से चला आ रहा है। द्रौपदी जब संकट की घडी़ में दुशास्सन द्वारा भरी सभा में चीरहरण किया जा रहा था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने ही द्रौपदी की लाज रखी थी।
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